वो हँसी बहुत
कुछ कहती थी
फिर भी अपने में
ही रहती थी
बाँध कर हिचकी
सावंले गालों पर
खींची काजल की
गीली लकीरें थी
कहने को बहुत कुछ
पर खामोशी थी
जिसमें मुस्कुराहटो के
कर्ज ही बाकी थे
आजाद तुम
ना
आजाद मैं
ख्यालों से
रात सारी थी
परेशां रात सारी थी ।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
Very nice
ReplyDeleteMind blowing mam,,,, 🙏
ReplyDeleteWow mam.....just amazing lines ..
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