सुनो ना मेरी बातें .....
निरर्थक जिन्दगी भी निराले अर्थ लिए होती है
हार हार कर हार गई
पर विश्वास ना हारा
ना ही मेरा अभ्यास हारा......
जीवन सदा ही समस्याओं से भरा होता है और मेरे पास भी अपने हिस्से की समस्याएँ हैं ।ये समस्याए ही मेरे विश्वास को मेरे चरित्र को और मेरे आत्मसम्मान को शक्ति प्रदान करतीं हैं । ये जीवन और वर्तमान कार्य क्षेत्र मैंने स्वयं चुना है और अतीत के कर्मों, भाग्य पर पश्चाताप नहीं कर पाती क्योकि अपनी ईमानदारी और निष्ठा मुझे गौरान्वित करती हैं । अपने वर्तमान कार्य क्षेत्रमें उत्पन्न हुई प्रतिस्पर्धा और प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए उन सभी मेरे अपनों की आभारी हूँ जिन्होंने मुझमें विश्वास जताया की मैं समस्याओ को झेलने के लिए उपयुक्त हूँ ।
मुझे लगता है ......वर्तमान में श्रेष्ठता स्वीकार्य है .........
श्रेष्ठ कार्यों की प्रशंसा होनी आवश्यक है, और तो और किसी भी कार्य का श्रेष्ठ आरंभ भी प्रशंसा का पात्र हैं क्योंकि जो भी श्रेष्ठ है सरल और सहज है उसके पीछे निश्चय ही अथक दैहिक परिश्रम गहरा मानसिक श्रम किया गया होगा ।मार्ग कभी भी प्रतिस्पर्धा का पर्याय हो ही नहीं सकते पर जीवन के पथरीले मार्ग और प्रतिकूल परिस्थितियों में आपको प्रत्येक कदम का कोई कारण और आधार बताना होता है ।मंजिल तक पहुँचने के तौर तरीके सदैव अनुकूल या सदैव प्रतिकूल नहीं होते ।अगर प्रतिकूल है तो हमें यह आशा छोड़ देनी चाहिए की समुद्र कब शांत होगा ।हमें तो बस इतनी सी आदत डाली है निरंतर तेज हवाओं मे भी प्रयास की नाव चलाने की।संभव और असंभव की बीच की दूरी को पाटना सम्पूर्णतयः व्यक्ति के निश्चय पर निर्भर करता है ।यह बात सत्य है सफलता रूपी परिधान कभी भी बनें बनाए नहीं मिलते ।इन्हें बनाने हेतु ईमानदारी मेहनत और व्यवहार कुशलता का हुनर चाहिए ।यकीन मानिए श्रेष्ठ परिणाम और सम्मान तो हमेशा ही प्रशंसा के पन्नों पर ही लिखा आता है ।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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