Sunday, July 19, 2020

बच्चों की खोयी परिभाषा

आज फिर कुछ समय इन बच्चों के बीच बिताने का फिर अवसर मिला। हमेशा जब भी समय मिलता है जा बैठती हूँ इनके पास,जो मुझे पहचानते हैं वो तो भाग कर पास आ जाते हैं पर नये बच्चे कुछ सहमे से आस पास घुमते हैं पर जल्दी ही हमारे बीच आ जाते हैं । यकीन मानिए जीवन के लिए इनके छोटे छोटे सपने सुनना उनके शब्दों में एक अलग ही अनुभव होता है। इन्हें भी हमेशा मेरा इंतजार रहता है। यही कह सकती हूं... यही वो पल है जिसकी आरजू है तो जी ले जी

मेरा अपना रूप ना कोई बच्चों की खोयी परिभाषा मैं ना किसी की आशा बनती कुछ तो मुझ पर हँस देते हैं कुछ पागल भी कह देते हैं मेरी बातें सुन सब कहते तुमको जब जब मैंने देखा सोचा पागल जीवन होगा..

प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री

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