आपको देखकर और सुनकर ही कोई खुश हो जाए और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाए तो यकीन मानिए और महसूस करिए इस अनकहे मान सम्मान को।मतलब से इतर मैंने रिश्ते बुने, यूँ ही किसी से मिलने किसी से बतियाने में भी खुशी पाई है ।बेमकसद से लम्हो में किसी के साथ मुस्कान बाँटना सीखा और सभी को स्वीकार करने में हमेशा सहज रही।इस सहजता में मर्जी की शर्त दखल नहीं दे पायी ।सच में कोई अपना मिले तो बिना शर्त मुस्कुराते हुए स्वागत हो ..चाहें आप कितने भी अकेले या उदास हो ...........अनकहा सा मान सम्मान हमेशा ही मेरे हिस्से में आया है हमेशा ..चाहें कंचन बरसे मेह तुलसी दास जी का कालजयी दोहा ....
हसो इस तरह की आंखे भीग जाए
मुस्कुराओ इस तरह की
हवाओं को नशा हो जाए ।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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