ना जाने कितनेपाप धोने कोगंगा गरजती हैप्यास पीने के लिएघटाए भी बरसती हैकिसी की आंखे छूनेनदी की बाढ़ तरसती हैआरती में भी अनश्वरआग होती हैमन के मौन की भीआवाज होती है।।
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