कल खेल में हम हो ना हो ........
निराशा के गगन में
हताशा भरी शाम में
बिना रोए सुबक रहा कोई
आज प्रियतम प्रिया
ओढे चादर मौन की
नींद सुख की सो रही
पलक अब देखती अपलक
एकांत को तुम्हारे समर्पित हूँ
अब मै केवल प्रतीक्षा हूँ
यह वक्त मेरा वक्त न था
तुम्हें अकेला करने पर तुला था
मुक्ति पथ पर बढ़ चली मैं
साँस थामें मौन तू खडा था
कांधे पर सर रख कर तेरे
कुछ पल और जीना चाहती थी
पल को पल भर भी न भूला सकें
इस पल में हम न रहे रहकर भी
अबकी बिछड़े तो फिर न मिलेंगें
अब संग मुस्कुराने के लिए
फिर कभी न हम मिलेंगे
अब तो हम यादों में रहेंगे
और सपनों में ही मिलेगे
अब सहेज लो मधुर यादों को
बिखर गई जो वक्त की लहरों पर
हमारी साँझे की अनगिनत यादें
हमारी साँझे की अनगिनत यादें।।
डाॅ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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