रहे ना रहे हम ... महका करेंगे बन के कली
बन के सबा बागे जिन्दगी में.......
सोयी वीणा पर बजते हैं
राग उन्हीं बीते गानों के
एकाकी में गीले नयनो से
देख रही ये चित्र रंगीले
जिन पर आकर रूक जाते
मेरे मन के भाव हठीले
आज उन्हीं बीती बातों की
स्मृति में मैं दीप जलाती हूँ
सुधियो की इस गहन निशा मे
जीवन की निधियो के
नव बन्दनवार सजाती हूँ ।।
डाॅ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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