आशा
कितनी सुंदर मेरी आशा
जीने की राह दिखाती
तन मन हार जाता किन्तु
जीने की चाह जगाती
नयनों में सजाती
सपनों का अनुपम संसार
मन को देती सौरभी विश्वास
हार अक्सर ही होती
जीत विरल ही मिलती
पर मेरी आशा मुझसे कहती
अपनी हार का उत्सव मनाओ
जीत के पल भी आ जाएगें
मेरी आशा मुझसे कहती
तुझे जागरण करना होगा
रात की कालिमा मिटाने को
तुझे जलना ही होगा
नया प्रभात लाने को
मुरझाऐ है अगर आस के फूल तो
कल नये फिर खिल जायेगें
रखो मन में कर्म का विश्वास
सफलता के बाग फिर मुस्कुराएगें।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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