दिलचस्प अंधेरे
मेरे शहर के अन्धेरे भी दिलचस्प है
यहां साए कहाँ जुदा होते
एक दूजे का हाथ थामे हुए
यहां तो अन्धेरो में भी
दरवाजे दिनभर खुले हैं
सरे आम अपनी
खामोशियों का पिटारा लिए
मकान के सूनेपन में
पत्तों की सरसराहट
दरवाजे की चरमराहट
और टूटी चूड़ियाँ
खाली पड़ी बोतलें
सरे राह अपनी दास्ताँ
का पिटारा लिए बैठीं है
मेरे शहर के अन्धेरे भी दिलचस्प हैं ।।
डॉ प्रियदर्शनी अग्निहोत्री
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