Saturday, June 06, 2020

वेदना

कर्म में नव चेतना है 
            प्यार में लघु वेदना है 
याद को बस भूल जाना 
            स्वर्ग तक को भेदना है 
लिखा बहुत कुछ जीवन पट पर
जीवन दर्शन, गूढ़ रहस्य बातें 
लेकिन सोचती हूँ सिर्फ़ यही 
दर्शन कर स्वंय के अंतर मन का 
जानती हूँ मानती हूँ सत्य भी यही 
मूल्य बहुत मानव के छोटे जीवन का 
फिर भी कितनी तृष्णा से आसक्त 
मानव का नन्हा सा चंचल मन है 
जीवन का अभाव दिखता 
केवल दिखता सीमा सा तन है।। 

डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री

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