कर्म में नव चेतना है
प्यार में लघु वेदना है
याद को बस भूल जाना
स्वर्ग तक को भेदना है
लिखा बहुत कुछ जीवन पट पर
जीवन दर्शन, गूढ़ रहस्य बातें
लेकिन सोचती हूँ सिर्फ़ यही
दर्शन कर स्वंय के अंतर मन का
जानती हूँ मानती हूँ सत्य भी यही
मूल्य बहुत मानव के छोटे जीवन का
फिर भी कितनी तृष्णा से आसक्त
मानव का नन्हा सा चंचल मन है
जीवन का अभाव दिखता
केवल दिखता सीमा सा तन है।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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