मैं आत्मा की धरती पर खेती करतीज्ञान के हल से श्रद्धा के बीज बोतीसत्य, संयम त्याग का खाद डालतपस्या के जल से सीचंतीकर्म की उगी घास कोसब्र की खुशी से नीदा करतीतब कहीं मिलती शाश्वत सुख कीअमर लहलहाती फसलजिसमें राग व्देष को जगह कहाँ .........
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