Thursday, June 04, 2020

पत्थर पर हल चला रही हूँ

मैं आत्मा की धरती पर खेती करती
ज्ञान के हल से श्रद्धा के बीज बोती
सत्य, संयम त्याग का खाद डाल
तपस्या के जल से सीचंती
कर्म की उगी घास को
सब्र की खुशी से नीदा करती
तब कहीं मिलती शाश्वत सुख की
अमर लहलहाती फसल
जिसमें राग व्देष को 
जगह कहाँ .........


No comments:

Post a Comment