Thursday, June 04, 2020

तुम्हारी एक अजनबी शाम

ख्याल हूँ मैं तो 
तुम्हारी एक 
अजनबी शाम का 
बन के अधूरा ख्वाब 
आँखों में ठहर जाऊँगा 
होठों पर मुस्कुराहट दे 
दूर कहीं चला जाऊँगा 
गुनगुनी धूप सा बन 
बाहों में सिमट जाऊँगा 
तुम जो चाहोगे तो 
बन सावन की घटा 
बरस जाऊँगा 
भीगा आंचल बन तुम्हारा 
तुम्ही से लिपट जाऊँगा 
ख्याल ही तो हूँ तुम्हारी 
एक अजनबी शाम का 
मेरे साथ गुजरी हर 
मुलाकात याद आएगी 
वक्त ठहर जाएगा 
मेरी हर बात याद आएगी 
हसरतें मुलाकात की दे 
तुम्हारी यादों में 
उम्र भर बस जाऊँगा 
ख्याल ही तो हूँ तुम्हारी 
एक अजनबी शाम का।।

डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री

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