ख्याल हूँ मैं तो
तुम्हारी एक
अजनबी शाम का
बन के अधूरा ख्वाब
आँखों में ठहर जाऊँगा
होठों पर मुस्कुराहट दे
दूर कहीं चला जाऊँगा
गुनगुनी धूप सा बन
बाहों में सिमट जाऊँगा
तुम जो चाहोगे तो
बन सावन की घटा
बरस जाऊँगा
भीगा आंचल बन तुम्हारा
तुम्ही से लिपट जाऊँगा
ख्याल ही तो हूँ तुम्हारी
एक अजनबी शाम का
मेरे साथ गुजरी हर
मुलाकात याद आएगी
वक्त ठहर जाएगा
मेरी हर बात याद आएगी
हसरतें मुलाकात की दे
तुम्हारी यादों में
उम्र भर बस जाऊँगा
ख्याल ही तो हूँ तुम्हारी
एक अजनबी शाम का।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
अदभुत, बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteBhut saandar ma'am
ReplyDeleteBahut sunder congrets keep it up
ReplyDeleteअविस्मरणीय
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteWell Written Mam
ReplyDeleteआपकी कविताओं की जितनी भी तारीफ की जाये कम है।
ReplyDeleteHATS off!
ReplyDeleteBahut sunder👌👌
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeleteAdbhut
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