सूर्य ने तपना सिखाया
वसुंधरा ने सहना
निशा ने चुप रहना
फूल ने काँटों में हँसना
स्वयं को समर्पित कर इन्हें
मैं चली तो राहें बन गई
जली तो दिवाली खिल गई
ऊँची उठी तो शिखर छोटा हो गया
आकर्षण मर्यादा का मुझमें देख
अवतार भी आकर्षित हो गया
दूसरों के लिए जी सदा
संजीवनी जीवन बना
हर साँस अग्निपथ पर
स्पनिदत दीपशिखा सी
तप मेरा देख
अग्नि भी शरमा गई
कर्म साधना से फलित
यज्ञ भूमि का अनुष्ठान
जीवन ये मेरा बन गया
जीवन ये मेरा बन गया।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
No comments:
Post a Comment