अपने में खोए हम कब के
खुद को भी खो चुके
खुद को चाह कर ही
किसी और को चाह सके
खुद का वजूद मिटा कर
दूसरों का तलाश कर सके
विश्वास रख तो कभी कुछ
हमेशा के लिए नहीं बिगड़ता
सुधर सकता है सब कुछ
बस नियत जरूरी है
कुछ उधड जाता, बिखर जाता
एक धागा ही सब सम्हाल लेता
हल्की सी तुरपाई भी नयापन लाती
सुधारने वाले युं भी कम होते हैं
घरों के कोनों में सिमटे
झुर्रियों में लिपटे
चंद धागे लिए बैठे हैं
अब देखिये ठहरती है
नजरें जा कर कहाँ कहाँ।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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