Saturday, June 06, 2020

भारत के भौतिक स्वरूप: हिमालय का भौगोलिक वर्गीकरण (INDIA PHYSICAL FEATURES - GREAT HIMALAYAS)

हिमालय का भौगोलिक वर्गीकरण (धरातलीय संरचना) [Relief Structure]

उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी पर्वत श्रेणियों में हिमालय और पूर्वांचल की पहाड़ियों को शामिल किया जाता है। यह विश्व की सर्वाधिक ऊँची पर्वत-श्रृंखला है जो अपनी हिमाच्छादित चोटियों, हिमनदियों, गॉों तथा सघन वनों के कारण जानी जाती है। हैं ।हिमालय की ये श्रेणियाँ मध्य एशिया में स्थित पामीर की गांठ (Pamir Knot), जिसे दुनिया की छत कहा जाता है,से निकलने वाली विशाल पर्वत प्रणाली का एक अंग हैं।

हिमालय का भौगोलिक विभाजन [Geographical Division of the Himalayas] हिमालय कोई एक पर्वत नहीं, बल्कि एक-दूसरे के समानांतर अनेक पर्वत श्रृंखलाओं का एक समूह है। इनमें से पांंच श्रेणियों को स्पष्ट रूप से पहचाना गया है (i) वृहद हिमालय (ii) मध्य हिमालय (ii) शिवालिक हिमालय (iv) ट्रांस हिमालय अथवा तिब्बत हिमालय (v)पूर्वाचल

1. वृहद हिमालय या आंतरिक हिमालय (The Great Himalayas or the Inner Himalayas)-बृहत हिमालय श्रेणी, जिसे केंद्रीय अक्षीय श्रेणी (Central Axial Range) के नाम से भी जाना जाता है, की पूर्व-पश्चिम लम्बाई 2,500 कि०मी० है। इसका विस्तार सिन्धु नदी के मोड़ से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक है। इसके अन्य नाम महान हिमालय तथा मुख्य हिमालय है। यह सिंधु नदी के मोड़ से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक लगभग 2400 किलोमीटर लंबी है। इसकी चौड़ाई 25 किलोमीटर तथा औसत ऊंचाई 6100 मीटर है ।इसकी ऊंचाई पश्चिम में नागा पर्वत के रूप में 8126 मीटर तथा पूर्व में नामचा बरवा पर्वत के रूप में 7756 मीटर है ।इस श्रेणी की अधिकतम ऊंचाई इस के मध्य भाग में है। जो नेपाल देश में स्थित है ।इस श्रृंखला में 40 चोटियों की ऊंचाई 7000 मीटर से अधिक है तथा बहुत सी चोटियां 8000 मीटर से ऊंची हैं ।इस श्रेणी का अधिकांश भाग वर्षभर हिम से ढका रहता है । इसी भाग से गंगा एवं यमुना नदियां निकलती हैं सिंधु सतलज व दिहांग की संकीर्ण और गहरी घाटियां भी इसी श्रेणी में है। इस श्रेणी में अनेक दर्रे हैं । कश्मीर में बुर्जिल ला हिमाचल प्रदेश में बारा लाचा ला शिपकीला उत्तर प्रदेश में थाग ला नीति ला लिपू लेख ला तथा सिक्किम में नाथू ला व जेलेप ला प्रमुख दर्रे हैं।


2. मध्य या लघु हिमालय (The Middle or the Lessar Himalayas)-बृहत् हिमालय के दक्षिण में उसके समान्तर यह 80 से 100 कि०मी० चौड़ी तथा 3,500 से 5,000 मीटर ऊंची पर्वत-श्रेणी है। यह एक जटिल श्रेणी है जिसकी अनेक शाखाएँ यत्र-तत्र फैली हुई हैं। इस श्रेणी की प्रमुख शाखाएँ धौलाधार, पीर पंजाल, नाग टिब्बा, महाभारत व मसूरी श्रेणियाँ हैं। इसी श्रेणी पर पीरपंजाल (3,494 मी०) व बनिहाल (2,832 बी मी०) नामक दो दर्रे हैं। जम्मू-श्रीनगर सड़क मार्ग बनिहाल दर्रे से होकर जाता है। इस श्रेणी में हिमालय से भी पुराने कई अपरदित व ऊबड़-खाबड़ मैदान हैं जिनके नाम अक्साई चिन, देवसाई त, दिपसांग तथा लिंगजीत हैं। इस श्रेणी में अनेक ऐसी विवर्तनिक घाटियाँ भी हैं जो निक्षेपण के कारण समतल बन गई है। कश्मीर घाटी, पोखरा व नेपाल की काठमाण्डू घाटियाँ इसके उदाहरण हैं। सिन्धु, सतलुज, गंगा, यमुना, गण्डकी, कोसी और ब्रह्मपुत्र नदियों ने इस श्रेणी को काटकर गहरी घाटियों का निर्माण किया है। भारत के अनेक प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटन-स्थल; जैसे शिमला, मसूरी, नैनीताल और दार्जिलिंग आदि इसी मध्य हिमालय की दक्षिणी ढलानों पर स्थित है

(3) उप-हिमालय या शिवालिक श्रेणी (Sub-Himalayan Foothill Zone or the Siwaliks)-यह। उपर्यक्त दोनों श्रेणियों के दक्षिण में फैली है। इन्हें बाह्य हिमालय (Outer Himalaya) भी कहते हैं।यह श्रेणी पोटवार बेसिन के दक्षिण से प्रारम्भ होकर पूर्व की ओर कोसी नदी तक फैली है। उत्तर-पश्चिम से पूर्व में यह लगभग 2,000 किलोमीटर लम्बी एवं 40 से 50 किमी चौड़ी है। हिमाचल प्रदेश व पंजाब में यह अधिक चौड़ी (50 किमी.) है, जबकि अरुणाचल प्रदेश में इसकी चौड़ाई मात्र 15 किमी. है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 1.200 मीटर के आस-पास है। पूर्व की ओर तिस्ता और रायडाक नदियों के निकट ये लुप्त हो जाती हैं। यह हिमालय का सबसे नवीन भाग है जो सम्भवतः 20 लाख से 2 करोड़ वर्ष पूर्व माने जाते हैं। ऊंचा-नीचा घरातल, तेज ढाल, जिन पर भू-स्खलन के साथ जमा हुआ अवसाद तथा गहरी घाटियां जिनकी दीवारों में दरारें पायी जाती हैं। विभिन्न भागों में इसके विभिन्न नाम है, जैसे गोरखपुर के पास डूंडवा, पूर्व की ओर चूरिया और मूरिया, आदि। इसको लघु हिमालय से अलग करने वाली घाटियों को पश्चिम में दून (Doon )और पूर्व में द्वार (Duars) कहते हैं। देहरादून, हरिद्वार ऐसे ही मैदान हैं। इन घाटियों में गहन खेती की जाती है तथा ये घनी बसी हैं। यहां भूस्खलन की घटना भी होती रहती है। इसका सम्पूर्ण पर्वतपदीय भाग (जिसमें तराई प्रदेश सम्मिलित है) दलदली और वनाच्छादित है। लघु हिमालय एवं शिवालिक हिमालय के बीच एक सीमान्त दरार है। शिवालिक को जम्मू में जम्मू पहाड़ी एवं अरुणाचल प्रदेश में डफला, मिरी एवं मिशमी पहाड़ियों के नाम से जाना जाता हैं ।  शिवालिक के दक्षिण कश्मीर से असम तक ग्रेट बाउंड्रीी फॉल्ट का विस्तार है दून तथा द्वार घाटी प्रदेशों में खेती की अच्छी संभावना के कारण बसाव सघन है  शिवालिक की  वर्तमान अवस्थिति  की जगह इंडो ब्रह्म नामक नदी का प्रवाह था । हिमाचल एवं पंजाब में शिवालिक की चोडाई ज्यादा 50 किलोमीटर तथाअरुणाचल में सबसे कम है ।शिवालिक का निर्माण कंकड़ी़ बजरी और आप आदि जैसे चट्टानों से हुआ है ।

4. ट्रांस हिमालय (The Trans Himalayas)-ट्रांस हिमालय में काराकोरम एवं लद्दाख श्रेणियों को सम्मिलित करते हैं। काराकोरम को संस्कृत साहित्य में कृष्णगिरी भी कहते हैं, जो सिन्धु नदी के उत्तर में स्थित है। काराकोरम श्रेणी का विस्तार पामीर से गिलगित प्रदेश की गिलगित नदी, बाल्टिस्तान एवं लद्दाख तक लगभग 600 किमी. में है। उसकी उत्तरी सीमा पामीर एवं अगहर पर्वत तथा दक्षिण में सिंधु एवं सहायक श्योक नदी तक है। इसकी सामान्य ऊँचाई 5500 मीटर से ऊपर है तथा चौड़ाई 120-140 किमी. है। इसकी उच्चतम चोटी के 2 या गाडविन आस्टिन यावागिर (8611 मीटर) है। यही भारत कीसबसे ऊँची चोटी है। अन्य चोटियों में गशरब्रुम । (8068 मीटर), ब्रोड पीक (8046मीटर), गशेरब्रम 1I (8035 मीटर) है यहाँ मिलने वाले हिमनदों में सियाचिन (75 किमी.), वाल्टोरो (58 किमी.), वियाफो ( 60 किमी.), हिसपर (62 किमी.) व रिमू(पाकिस्तान), वास्तव,क्रनयांग, गाडविन आस्टिन (30 किमी.), फेडशेको (74 किमी.)। रिमू एक प्रकार का वायुशाखन हिमनद (Diffluent Glacier) है ।काराकोरम श्रेणी दक्षिण में सिंधु एवं सहायक श्योक के मध्य लहाख श्रेणी स्थित है। जबकि लद्दाख नामकान पठार भी है जो इसके उत्तर में स्थित है। लद्दाख श्रणी 1000 किमी. में विस्तृत है। यह काराकोरम से नीची है। यहाँ मिलने वाला चोटियो में राकपोशी (7889 मी.), गुरला मण्धाता (7728 मी.) प्रमुख हैं। लद्दाख के मध्य एक दर्रे से सतलज नदी बहती है ।इसके उत्तर मे चोम्बो लहरी दर्रा स्थित है ।जहाँ से सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी की सहायक दिहांग नदी बहती लद्दाख श्रेणी कैलाश पर्वत पर पूरी होती है। सिंधुुुु नदी दी लद्दाख एवं जांच कर श्रेणी केेेे बीच बहती है ।सिंधु नदी  लद्दाख श्रेणी को  कुंज नामक स्थान पर  काटती है  ।सतलज सिंधु व ब्रह्मपुत्र नदियां  ट्रांस हिमालय से निकलती हैं  ट्रांस हिमालय  परतदार चट्टानों द्वारा बना है  और इस पर वनस्पति का पूर्ण अभाव है ।

पूर्वाचल-यह मुख्य हिमालय के पूर्व में स्थित है जिस कारण इसे पूर्वाचल कहते हैं। इस भाग को पूर्वी उच्च प्रदेश अथवा पूर्वी पहाड़ियां भी कहते हैं। ब्रह्मपुत्र नदी का दिहांग गॉर्ज पार करने के पश्चात् हिमालय पर्वत दक्षिण की ओर मुड़ जाता। है और पहाड़ियों की श्रृंखला का निर्माण करता है । ये पहाड़ियाँ अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा तथा पूर्वी असम में फैली हुई हैं।






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