Tuesday, June 02, 2020

मेरी हताशाये

आज हताशाओं की राहो पर 
जीवन हारा देख रही हूँ 
देखती थी जिस तरफ 
छाया था अवसाद घना 
वेदना के काले बादल घिरे 
आहों के अश्रु नैनों से छलके 
धैर्य साहस जा रहे थे 
छोड़   मंन   का  साथ 
परछाई भी छलती रही 
दिन के  उजालों  मे 
भ्रम का चक्रवूह बुनती रही 
रात के अंधेरों मे 
विलुप्त मेरी आशा थी 
बसी मंन मे निराशा थी 
 भ्रम शंका की लहरों पर 
जीवन नैया डोलती थी  
टूटती पतवार मेरे विशवास की
 भाग्य भी मुझको छल गया 
घाव भरता  है समय पर 
वो समय भी पर टल गया 
हताशाओं की पीड़ा 
कभी भुला ना सकूंगी 
असफलताओ के अभिश्राप 
कभी मिटा ना सकूंगी 
सफलताओं के गीत शायद 
कभी ना गुनगुना सकूंगी 
कभी ना गुनगुना सकूंगी॥ 


डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री 








































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