बनावट के दौर
वर्तमान दौर के बनावट के
मकान और जिन्दगी के
फलसफे भी कुछ और है
ईट से ईट जुड़े तों
तारीफ उस जुड़ाव की
लेकिन ये जुड़ाव
रास्ते नहीं दीवार बनाए
दीवार आशियाना बन
आसरा दे जिन्दगी को
दीवार से राह दरवाजे की निकले
पर वक्त ने क्या कुछ नहीं बदला
भूमिकाए बदलते नजरिए जाते बदल
कभी दीवार की वजह से ईट गलत
कभी छत की वजह से दीवार सही
वक्त ने कभी दीवारे ऊंची की
कभी नजर दरवाजो को लगाई
बँटवारे के दोष से दीवारे मुक्त
दूरीयो के दोष से राहे आजाद
मंजिले अनेक तो अनगिनत सीढ़ियाँ
मकान,जिन्दगी और इंसान
साथ साथ जीने के लिए
लिए उधार के अन्दाज
लिए गफलतो के दौर ।।
डाॅ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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