Tuesday, June 02, 2020

जीवन का शिल्प

जीवन     का    शिल्प
पावन श्रम से  हो प्रेरित  
वरदान  ऐसा  चाहूँ   
ना मान की हो अभिलाषा 
ना सम्मान की हो लालसा 
जन सुख मे सुख पाऊँ 
जन दुःख मे साथ निभाऊँ 
राग द्वेष से मंन मुक्त कर 
तन की प्रकृति मंन से प्रेरित कर 
मंन की सीमित आसक्ति कर 
मूल्यांकन अपनी चेतना का कर 
स्थापित आत्म सत्य करू 
सरल   बन   सहज  बन 
सृजन   मे रत मगन रहूँ
शांत मंन  को कर
कर्म मेरा धर्म हो
कर्म मेरी हो भाषा
 सकर्म  मेरी मृत्यु हो
यही जीवनअभिलाषा
यही जीवन अभिलाषा

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