पावन श्रम से हो प्रेरित
वरदान ऐसा चाहूँ
ना मान की हो अभिलाषा
ना सम्मान की हो लालसा
जन सुख मे सुख पाऊँ
जन दुःख मे साथ निभाऊँ
राग द्वेष से मंन मुक्त कर
तन की प्रकृति मंन से प्रेरित कर
मंन की सीमित आसक्ति कर
मूल्यांकन अपनी चेतना का कर
स्थापित आत्म सत्य करू
सरल बन सहज बन
सृजन मे रत मगन रहूँ
शांत मंन को कर
कर्म मेरा धर्म हो
कर्म मेरी हो भाषा
सकर्म मेरी मृत्यु हो
यही जीवनअभिलाषा
यही जीवन अभिलाषा
शांत मंन को कर
कर्म मेरा धर्म हो
कर्म मेरी हो भाषा
सकर्म मेरी मृत्यु हो
यही जीवनअभिलाषा
यही जीवन अभिलाषा
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