बूढ़ी हो गई आस की राहें
साँस की आहट तेरी तकते तकते
एक अजीब सी खामोशी में
मैंने सुनी हजारों हजार खामोश
साँसों की आवाज़ अभी अभी
मोती साँसों के बिखर रहे पल पल
सीमाओं में बन्ध रहा जीवन
न हो कर भी उनके होने का अहसास
अतीत के गलियारों में
भटकता मेरा मन
कितना क्या कुछ पीछे छूटा
अपना क्या कुछ खोया
मेरा घर मेरा बचपन
वो छोड़ गये केवल
अनगिनत यादों के मौसम
फिर भी मृत्यु शैय्या पर
सहज वो हैं सहज वो हैं।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री (Aiims say Abhi Abhi)
मेरे पिताजी
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