तुमको जब जब मैंने देखा
समझा कोई अपना होगा
जीवन के निस्सीम पथ पर
गुरू जीवन का भार पड़ा है
मैं ममता की मौन पुजारिन
जली आरती लिए खडी हूँ
ढूंढ निकालुँगी तुमको मैं
धरती के इस महा विजन से
मन के पत्थर पाषाणो को
चाहें जितना कपँना होगा
किन्तु अधरो के कम्पन बनते
वाणी की नन्हीं सी सीमा
मैं समझी बनता कोई
पथ का नूतन बन्धन होगा
पथ की इस सुनसान दिशा में
मुझको भरम तब हो जाता है
तुमको जब जब मैंने देखा
समझा कोई अपना होगा।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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