व्यक्ति और रिश्तों को लेकर कभी कभी बेहद अप्रिय अनुभव जीवन मे शामिल हो जाते है। सभी के होते है मेरे भी हुए है मगर मैंने हमेशा इस बात पर यकीन किया कि बुराई का आकार दुनिया मे हमेशा अच्छाई से छोटा रहेगा इसलिए हमेशा मन को विश्वासी बनाए रखा।ऐसा करना मुझे निजी तौर पर एक बड़ा सुकून देता रहा है। छले जाने पर अतिरिक्त सावधान होना उचित है मगर सन्देहवृत्ति और शंका से दुनिया का मूल्यांकन करने लगना उचित नही है। त्रासद और दुःखद अनुभव से मुक्ति उसे पकड़े रहने से कभी नही मिलती है जीवन की एक विशेषता इसकी गति है। हमें हर हाल में आगे बढ़ना चाहिए।
दुनिया मे हर किस्म के लोग है बुरे आपको मिले यह आपका भाग्य है मगर अच्छे भी आपको ही मिलेंगे कहीं उन बुरे लोगों के कारण आप अपनी दुनिया मे अच्छे लोगों का आगमन तो निषिद्ध नही कर रहें?
विचार कीजिएगा।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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