Wednesday, June 17, 2020

भारत में हरित क्रान्ति (Green Revolution in India)

हरित क्रांति शब्द का प्रयोग अनाज के नए बीजों के विकास तथा विसरण के लिए किया गया है। नॉर्मन-बोरलॉग (Norman-Borlaug) को हरित क्रांति का जनक माना जाता है। प्रो. नार्मन अर्नेस्ट बोरलॉग (Prof. Norman Ernest Borlaug) तथा उनके सहयोगियों ने मैक्सिको (Mexico) में गेहूँ की अधिक उपज देने वाली फसलों का विकास किया। इसके फलस्वरूप सन् 1965 में मैक्सिको में गेहूँ की प्रति हेक्टेयर उपज 5,000 किलोग्राम से बढ़कर 6,000 किलोग्राम हो गयी चावल के उत्पादन में हरित क्रांति तब आई जब फिलीपींस के मनीला में अंतर्राष्ट्रीय चावल शोध संस्थान (International Rice Research Institute-IRRI) का स्थापना की गई तथा इसने चावल की अधिक उपज देने वाली वर्णसंकर किस्म विकसित की अधिक उपज देने वाली गेहूँ व चावल की ये वर्णसंकर (Hybrid) किस्में विभिन्न देशों में पहुँचाई गई, जिससे हरित क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। हरित क्रांति का प्रयोग मुख्यत: दो भिन्न अर्थों में किया गया है। कुछ कृषि के विशेषज्ञ इसका प्रयोग विकासशील देशों में खाद्य की कमी को कम करने के लिए कृषि क्षेत्र में लाए गए परिवर्तन के लिए करते हैं, अन्य इसका उपयोग पौधों में किए गए विशेष सुधार के लिए करते हैं, जैसे- उच्च उत्पादक फसल जातियों (HYVs) का विकास। हरित क्रान्ति का चाहे कोई भी अर्थ हो गेहूँ तथा चावल के बीजों की नई किस्मों का प्रयोग कर पैदावार में हुई वृद्धि एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वास्तव में बीजों के इन किस्मों ने विकासशील देशों के भू-दृश्य में परिवर्तन किया है तथा खाद्य की कमी से उत्पन्न समस्या को बहुत हद तक कम कर दिया है।
भारत में हरित क्रान्ति (Green Revolution in India) भारत में हरित क्रांति के  पितामह, एम.एस.स्वामीनाथन को माना जाता है। पिछले चालीस वर्षों में नए बीजों के कारण पैदावार में हुई वृद्धि प्रभावशाली है, कृषि उत्पादन (खासकर गेहूँ एवं चावल) में अत्यधिक बढ़ोतरी दर्ज की गयी है तथा इसे हरित क्रांति कहा गया है। भारत में कुछ चयनित फसल, जैसे- मकई व बाजरा का संकरण 1960 में शुरु हुआ। 1963-64 में गेहूं की फसल के लिए मैक्सिको के छोटे किस्म का प्रयोग कुछ जगहों पर किया गया चावल के विदेशी किस्म, जैसे- ताइचुंग नेटिव-1 का प्रयोग भारत में सबसे पहले 1964 में किया गया। भारत में उच्च उत्पादक फसल जातियों का वृहत् पैमाने पर प्रयोग 1965-66 के खरीफ फसल के मौसम में किया गया। हरित क्रान्ति उपलब्धियाँ उच्च उत्पादक फसल जातियों के वितरण के कारण ग्रामीण भूदृश्य परिवर्तित हो गया है। 

हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएँ (Salient Features of Green Revolution)
(1) अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग (Use of High Yielding Varieties-HYV) : सन् 1966 से कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए अधिक उपज देने वाले उन्नत बीजों का प्रयोग शुरु किया गया। उन्नत बीजों के प्रयोग का यह कार्यक्रम विशेषता: पाँच फसलों (गेहूं, चावल,बाजरा, मक्का और ज्वार) के लिए अपनाया गया। इन बीजों में गेहूँ के कल्याण व सोना, बाजरे के 1.V.-1, मक्का के गंगा-101, ज्वार के X-2 तथा चावल के विजय, रत्न व पद्मा आदि प्रमुख हैं। इन बीजों की पूर्ति 'राष्ट्रीय बीज निगम' तथा 'तराई बीज विकास निगम (Tarai Seed Development Corporation) 
(2) सिंचाई (Irrigation) में विस्तार : सिंचाई के विस्तार से हरित क्रांति को बहुत सफलता मिली है। भारत जैसे मानसून प्रदेश में सिंचाई का बड़ा महत्व है। भारत में नहरें, कुएँ, नलकूप तथा तालाब सिंचाई के महत्वपूर्ण साधन हैं । सन् 1965-66 में 320 लाख हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा थी जो बढ़कर वर्तमान में लगभग 680 लाख हेक्टेयर हो गई। भविष्य में सिंचाई के क्षेत्र में वृद्धि करने के लिए कई योजनाएँ बनाई गई हैं। 
(3) उर्वरकों का प्रयोग (Use of Fertilizers) : हमारे देश में गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करने की परम्परा रही है। नई कूषि नीति के अन्तर्गत रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया गया जिससे कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। सन् 1967-68 में 11 लाख टन उर्वरकों का प्रयोग किया गया जो बढ़कर वर्तमान में 277 39 लाख टन हो गया। भारत में उर्वरकों के उत्पादन में भी बड़ी तीव्र गति से वृद्धि हुई । सन् 1960-61 में केवल 1.50 लाख टन ही उर्वरक पैदा किए गए थे जो बढ़कर 2012-13 में 223.87 लाख टन हो गए। 
(4) आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग (Use of Modem Agricultural Machinery) : भारतीय कृषि में परम्परागत औजारों के स्थान पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग अधिक बढ़ गया जिससे हरित क्रांति को सफलता मिली। (5) कीटनाशक औषधियों का प्रयोग (Use of Pesticides) : अधिक उत्पादन लेने के लिए फसलों को कीड़ों तथा बीमारियों से की बचाने के लिए कीटनाशक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। हरित क्रांति के अधीन इन औषधियों के प्रयोग को बढ़ाया गया है।
(6) बहु-फसल (Multiple Cropping) : उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, सिंचाई कृषि मशीनरी आदि के प्रयोग से फसलें कम समय में तैयार होने लगी जिससे एक खेत में एक वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाना सम्भव हो गया। भारत के कई इलाकों में बहु फसली योजना 1967-68 में शुरु की गई और 1990-91 में 3.60 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर बहु-फसली कृषि की गई । वर्तमान में बहु फसलीय क्षेत्र बढ़कर लगभग 6 करोड़ हेक्टेयर हो गया। 
(7) भू-संरक्षण (Soil Conservation): हरित क्रांति को सफल बनाने के लिए भूमि कटाव को रोकने, भूमि की उर्वरता को बनाए रखने, मरुस्थलों के विस्तार को रोकने तथा शुष्क कृषि प्रणाली के विस्तार के लिए कई भू-संरक्षण सम्बन्धी योजनाएँ बनाई गई हैं। 
(8) मृदा परीक्षण (Soil Testing) : हरित क्रांति के विस्तार के संदर्भ में सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों की मृदा का सरकारी प्रयोगशालाओं में परीक्षण करवाने की व्यवस्था की है। इन परीक्षणों में यह पता लगाया जाता है कि विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में किन तत्वों की कमी है और उसे किन उर्वरकों के प्रयोग से दूर किया जा सकता है और कौनसी मिट्टी में कौनसी फसल अधिक होगी और उसमें किस प्रकार के बीज बोए जाएँ। 
(9) ग्रामीण विद्युतीकरण (Rural Electrification) : कृषि के विकास के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण अति आवश्यक है। इसके लिए 1969 में ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (Rural Electrification Corporation tion) की स्थापना की गई है। स्वतंत्रता प्राप्त के समय देश के केवल 0.5 प्रतिशत गांवों को ही बिजली उपलब्ध थी। 31 मार्च, 2015 तक भारत के लगभग 91% गांवों का विद्युतीकरण हो चुका है। हरियाणा देश का पहला राज्य था जहाँ पर सभी गांवों को बिजली उपलब्ध कराई गई। पंजाब, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र तथा नागालैंड में 97% से 100% गांवों को बिजली प्राप्त हो चुकी है। 
हरित क्रांति की मुख्य उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं:
(i) गेहूँ, चावल, मकई तथा बाजरे के उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि हुई है। (ii) मुख्य खाद्य के मामले में भारत आत्म-निर्भर हो गया है। (ii) दो फसल वाले क्षेत्रों में वृद्धि हुई है, इस तरह भारतीय कृषि के तीव्रीकरण में वृद्धि हुई है। (iv) उन क्षेत्रों में जहाँ हरित क्रान्ति सफल रही है, खासकर पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के मैदानी जिलों में किसान निर्वाह अर्थव्यवस्था से बाजार अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने लगे हैं। (v) जीव-वैज्ञानिक परिवर्तनों के क्षेत्र में (बीज खाद) हरित क्रांति के कारण रोजगार उत्पन्न हुए हैं। (vi) हरित क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है। इसके कारण राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है। (vii) खेतिहर मजदूरों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। (vii) ग्रामीण सम्पन्नता में वृद्धि दर्ज हुई है।

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