Wednesday, June 10, 2020

भारत के अपवाह तंत्र (The Drainage Systems of India)


किसी भी देश का अपवाह तंत्र वहाँ के उच्चावच तथा भूमि के ढाल पर निर्भर करता है। भारत एक विशाल देश है। इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार है जिनके बीच उत्तरी भारत का विशाल मैदान है। अतः भारत के अपवाह तंत्र को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा जाता है :

1. हिमालय की नदियाँ (The Himalayan Rivers)

2. प्रायद्वीपीय नदियाँ (The Peninsu
lar Rivers)



1. हिमालय की नदियों का अपवाह तंत्र (Drainage Pattern of the Himalayan Rivers) हिमालय पर्वत से विशाल नदियाँ प्रवाहित होती हैं। हिमालय की नदियों में निम्नलिखित तीन अपवाह तंत्र हैं:

1) सिन्धु अपवाह, (ii) गंगा अपवाह, (ii) ब्रह्मपुत्र अपवाह।
 I  सिन्ध नदी तंत्र (The Indus River System) सिन्ध भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण अपवाह-तंत्र सिन्धु नदी की लम्बाई 2880 किमी. है तथा भारत इसकी সনाई 709 किमी. है। सिन्धु का जल ग्रहण क्षेत्र की atchment Area) लगभग 1165000 वर्ग किमी. है, जिसमें लगभग 21,284 वर्ग किमी. भारत में है। भारतीय उपमहाद्वीप में सिन्धु सबसे पश्चिमी नदी तंत्र है। झेलम, चिनाब, रावी, व्यास तथा सतलज इसकी मख्य सहायक नदियां हैं । सिन्धु का उद्गम बोखर-चू हिमनद में होता है.जो कैलाश श्रेणी (6714 मीटर) के उत्तरी ढाल पर स्थित है।अपने उपरी भाग में यह नदी विशाल जॉर्ज का निर्माण करती है। सिंधु नदी भारत में केवल जम्मू और कश्मीर राज्य से ही होकर प्रवाहित होती है। अंत में सिंधु नदी कराची के पूर्व में अरब सागर में मिल जाती है।
झेलम (वितस्ता ) (Jhelum or Vitasta) : झेलम का उद्गम एक जल-स्रोत (शेषनाग झील) से वेरीनाग में होता है, जो कश्मीर घाटी के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित है। यह उत्तर-पश्चिम में लगभग 110 किमी. तक बहती है जहां यह वुलर झील में प्रवेश करती है तथा बारामुला से आगे मुजफ्फराबाद (पाकिस्तान) की ओर मुड़ जाती है। यह ट्रीम्मू (त्रिमू) के निकट चिनाब से जाकर मिल जाती है। सम्पूर्ण नदी की लम्बाई 400 किमी. है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 28,490 वर्ग किमी. है। यह नदी अनंतनाग एवं बारामुला के बीच नौगम्य है। यह नदी कश्मीर की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। श्रीनगर में इस पर शिकारा या बुरे अधिक चलाये जाते हैं।
चिनाब-यह सिन्धु की सहायक नदियों में सर्वाधिक लम्बी है। हिमाचल प्रदेश के टाण्डी के समीप बारालाचा दर्रा इस नदी का उद्गम स्थल है। यह चन्द्रा लाहौल भागा नामक धाराओं से मिलकर बनी है, अतः हिमाचल प्रदेश में इसे चन्द्रभागा कहते हैं। बारालाचा दर्रा की समुद्र तल से ऊँचाई 4480 मीटर है। भारत में चिनाब नदी की लम्बाई 1180 किलोमीटर है और इसका जल-ग्रहण क्षेत्र 26755 वर्ग किलोमीटर है। इस नदी का संस्कृत में अस्किनी' या 'चन्द्रभागा' है।
रावी-यह भी सिन्धु की एक प्रमुख सहायक नदी है। पीरपंजाल तथा धौलाधर रानियों के बीच स्थित बांगालह बेसिन रोहतांग दर्रा इस नदी का उद्गम-स्थल है। यह पंजाब की एक छोटी नदी है और इसे लाहौर की नदी के नाम से भी जाना जाता है। बांगालह बेसिन समुद्र तल से 4570 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भारत में रावी नदी की लम्बाई 720 किलोमीटर है और इसका अपवाह क्षेत्र 5957 वर्ग किलोमीटर है। इस नदी का नाम संस्कृत में "परुष्णी' अथवा 'इरावती है।
व्यास-यह सिन्धु की एक अन्य सहायक नदी है यह रोहतांग दर्रे के पास व्यास से निकलती है। भारत में व्यास नदी की लम्बाई 625 किलोमीटर है और इसका जल क्षेत्र 25,900 वर्ग किलोमीटर है। इस नदी का नाम संस्कृत में 'विपाशा' या 'अर्गिकिया' है।
सतलज   इसका उद्गम कैलाश श्रेणी के दक्षिणी ढाल पर स्थित मानसरोवर झील के निकट राक्षस झील (4555 मीटर) से होता है। यह हिमाचल प्रदेश में शिपकी दरे से प्रवेश करती है, यही दरमा दर्रा स्थित है। सतलज सिन्धु की प्रमुख सहायक नदी है। भारत में इस नदी की लम्बाई 1050 किलोमीटर है और इसका जलग्रहण क्षेत्र 24000 वर्ग किलोमीटर है। भाखड़ा और नांगल बाँधों के कारण यह नदी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। संस्कृत में इसका नाम
"शूद्र' या 'शतुद्री' है।



II गंगा नदी-तन्त्र
-इस नदी-तन्त्र का निर्माण हिमालय एवं प्रायद्वीपीय उच्च भागों से निकलने वाली नदियों द्वारा होता है। हिमालय के हिमाच्छादित भागों से आने वाली गंगा, यमुना, घाघरा, गंडक, गोमती तथा कोसी नदियाँ और प्रायद्वीपीय उच्च भागों से निकलने वाली चंबल, बेतवा, टोंस, केन, सोन इत्यादि नदियाँ गंगा नदी-तन्त्र का निर्माण करती हैं।
गंगा नदी उत्तराखण्ड के गढ़वाल हिमालय में केदारनाथ चोटी के उत्तर में 6,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री हिमनद से निकलती है। देवप्रयाग के ऊपर इसे भागीरथी कहा जाता है। देवप्रयाग में जब अलकनंदा एवं भागीरथी आपस में संयुक्त होती है तब इस संयुक्त धारा को गंगा के नाम से जाना जाता है। हरिद्वार के निकट यह नदी मैदानी भाग में प्रवेश करती है। इलाहाबाद के निकट इसमें यमुना नदी आकर मिलती है। गंगा में दाहिने किनारे अथवा उत्तर से आकर रामगंगा, गोमती, घाघरा, गण्डक, कोसी एवं महानन्दा नदियां मिलती हैं। गंगा नदी की कुल लम्बाई 2,525 किमी है, जिसमें से 1,450 किमी पश्चिम बंगाल में है। बांग्लादेश में गंगा नदी को पद्मा के नाम से जाना जाता है। भागीरथी-हुगली क्षेत्र में प्रायद्वीपीय पठार से आने वाली कई छोटी-बड़ी नदियां इसमें आकर मिलती हैं। भारत में गंगा का अपवाह क्षेत्र लंगभग 8,61,404 वर्ग किमी है। हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, पटना, भागलपुर, वाराणसी और कोलकाता नगर गंगा नदी के किनारे पर अवस्थित हैं। भागीरथी पर टिहरी बांध तथा मांग पर फरक्का बांध बनाया गया है।
यमुना नदी  -यमुना नदी, गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है। यह नदी यमनोत्री नामक हिमनद यमुना से 6330 मीटर की ऊँचाई से निकलती है और ताजेवाला नामक स्थान पर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। गंगा नदी के लगभग समानान्तर बहने के बाद यह नदी इलाहाबाद के निकट गंगा में जा मिलती है। इसकी कुल लम्बाई लगभग 1,376 किलोमीटर है। दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत से निकल कर चम्बल, बेतवा तथा केन नदियाँ इसमें आकर मिलती हैं।
चंबल (Chambal)-चंबल यमुना की प्रमुख सहायक नदी है। इसकी लम्बाई 960 कि०मी० है। यह नदी मध्य प्रदेश के मालवा पठार पर स्थित इंदौर जिले में महू (Mhow) के निकट निकलती है। यहाँ से यह उत्तरमुखी होकर एक महाखड्ड से बहती हुई राजस्थान के कोटा जिले में पहुंचती है जहां इस पर गांधी सागर बांध बनाया गया है। कोटा से चंबल नदी बूंदी सवाई माधोपुर और धौलपुर होती हुई इटावा जिले में सहान के निकट यमुना में जा मिलती है। इसकी सहायक नदियाँ काली सिन्द, सिवान, पार्वती और बनास हैं। चंबल अपनी उत्खात् भूमि (Badland Topography) के लिए प्रसिद्ध है जिसे चंबल के बीहड़ (Ravines) कहा जाता है। इस नदी पर बनने वाले अन्य बांध राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर, कोटा बैराज इत्यादि हैं।
गंडक -यह नदी नेपाल हिमालय में धौलागिरी व माउंट एवरेस्ट के बीच निकलती है। इसे नेपाल में सालिग्रामी कहते हैं। गंडक काली गंडक और त्रिशूली गंगा के मिलने से बनती है। महाभारत लेख श्रेणी और शिवालिक को पार करके यह नदी बिहार के चंपारण जिले में गंगा के मैदान में प्रवेश करती है और पटना के निकट सोनपुर में गंगा में मिल जाती है।
घाघरा नदी  को सरयू नदी के नाम से भी जाना जाता है। इसे पहाड़ी क्षेत्र में करनाली तथा मैदानी क्षेत्र में घाघरा कहा जाता है। यह नदी हमेशा अपना मार्ग परिवर्तित करती रहती है। यह नदी तिब्बत के पठार में स्थित मापचाचुंग हिमनद से निकलती है। नेपाल में इसे मांचू या करनाली के नाम से जाना जाता है। छपरा के निकट यह नदी गंगा से मिल जाती है। शारदा, राप्ती एवं छोटी गण्डक इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। अयोध्या इसी नदी के किनारे पर स्थित है। घाघरा बांध इस नदी पर बनाया गया है।
कोसी यह नदी बायीं ओर से आकर गंगा में समाहित होने वाली प्रमुख सहायक नदी है। इस नदी को आरम्भिक क्षेत्र में 'अरुणा' नदी के नाम से जाना जाता है, जो गोसाईनाथ के उत्तर में 6770 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। यह नदी प्रारम्भ में सात धाराओं-मिलाम्ची, भोटिया, कोशी, टाम्बे कोशी, लिक्सो, दूध कोशी, अरुणा और तम्बूर में प्रवाहित होती है। इस नदी की कुल लम्बाई 730 किलोमीटर है तथा अपवाह क्षेत्र 86,900 वर्ग किमी. है। इसे प्रलयंकारी बाढ़ों के कारण बिहार का शोक (Sorrow of Bihar) कहा जाता है।
सोन नदी  सोन नदी स्वर्ण नदी के नाम से भी जानी जाती है। यह मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलती है। इसकी लम्बाई लगभग 784 किमी है। पटना से पूर्व यह नदी गंगा से मिल जाती है। महानदी, बांस, गीत, रिहंद, कांकर, उत्तरी कोयल, काहर इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। रिहन्द पर रिहन्द बांध और बरास पर बाण सागर बांध का निर्माण किया गया है। 
दामोदर नदी दामोदर नदी फ्लामू (झारखण्ड) से निकलती है। इसकी लम्बाई लगभग 541 किमी है। फुलटा के पास यह हुगली नदी में मिल जाती है। बाराकर इसकी प्रमुख सहायक नदी है। धनबाद और दुर्गापुर नगर इस नदी के किनारे पर स्थित हैं। पंचेत, तिलैया, कोनार, अय्यर, वर्ग और मैथान बांध इस नदी पर बनाए गए हैं।
III ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र-ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवाहित होने वाली नदियों में सबसे बड़ी नदी है, किन्तु प्रवाह-क्षेत्र की दृष्टि से यह भारत की सबसे बड़ी नदी नहीं है। तिब्बत के पठार में स्थित कैलाश पर्वत के पूर्वी ढाल पर 5150 मीटर की ऊँचाई से यह नदी निकलती है। इसका उद्गम मानसरोवर झील से 100 किमी. दक्षिण-पूर्व में स्थित है। ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह क्षेत्र तिब्बत, बांग्लादेश और भारत में है। यह नदी नामचाबरवा शिखर तक पूर्व दिशा में हिमालय के समानान्तर लगभग 1200 किमी. में प्रवाहित होती है। जिसे 'सांग-पो' (Psang-Po) के नाम से जाना जाता है। नामचा बरवा शिखर के बाद यह दक्षिण तथा दक्षिण पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती है। भारत में इस स्थान पर इसे 'स्यांग' तथा 'दिहांग' नाम से जाना जाता है। सदिया से आगे बढ़ने के बाद ही इसे ब्रह्मपुत्र कहा जाता है। सुवनशिरी, धनश्री, मानस, संकोश, रैदास, तिस्ता, दिहांग, लोहित, दीशू, कोपिली आदि इसकी सहायक नदियाँ हैं। ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लम्बाई 2900 किलोमीटर है, इस नदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र 5,80,00 वर्ग किलोमीटर से अधिक है, जिसमें से भारत में 3,40,000 वर्ग किलोमीटर है।

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