मैंने गुलाल औरों को मलने कभी ना दियाचेहरे को आज तकतेरा इंतज़ार है .......फिर उड़ा गुलालफिर सजी रंगों की बारात की कुछ बचपन की शरारत बाकी है........डा प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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