Tuesday, June 02, 2020

विवशता

विवशता

मेरा आसमां

प्रेम में कभी विवशताओंको 
महसूस करके देखा
बरसों गुजर गए
रोकर नहीं देखा
आँखों में नींद
मगर सोकर नहीं देखा
सूरज भी अब नहीं फुसफुसाता
न ही धूप ही बतियाती
बरगद की घनी छाँव
खामोशियों को बेहतर कहती
झींगुरों के साथ गुनगुनाती रात
मुझसे ना कह कर भी कहती
खामोश आसमां  में डुबकियाँ लगा
हैरानियाँ लौट आएंगी
लेकिन मेरा आकाश 
कभीसिरहाने कहाँ बैठा।।

डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री

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