Saturday, June 06, 2020

शब्दों के अर्थ

मेरे शब्दों के अर्थ अनेकों है 
जो समझो जो चाहो लगा लेना 
मैं शब्दों के मोती बिखराती हूँ 
तुम स्नेह धागों में पिरो लेना 
तो सुनो कुछ आज जो मन में है 
             सुनाती हूँ 
साँसों के सजल दीप जलाए मौन हूँ 
तुम्हारी प्रतीक्षा में आँखें बिछाएं मौन हूँ 
इन पलकों की मौन छाँव में 
स्मृतियों की तुम्हारी स्वर्णिम छाया 
मृग तृष्णा सी पगली भटक रही है 
किन्तु साधना में सिद्धी है 
आज भी विश्वास मेरा 
नयनों के सागर में दिखेगा 
तुम्हें मौन हो आकाश मेरा 
और पतझड़ भी झूम कर कहेगा 
आ रहा देखो मधुमास तेरा 
मत नयन खोलो प्रिया अभी 
ध्यान बनकर मैं तो चढता ही रहूंगा
एक आस का दीप लिए मैं 
शायद जीवन सारा देख रहीं हूँ
तो तुम जो वचन हरो तो मैं 
सौ सौ जन्म प्रतीक्षा कर लूँ।। 

डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री

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