मुक्त मेरी चेतना के द्वार थे
इसमे बसे तेरी स्मृतियो के निशान थे
आज चांदनी रात तेरी यादों के
तारो की बारात सजा लाई
छू कर तुमको पवन चले
यादों के आँचल उड़े
प्यार के इस पल मे तुझे निहारु
मेरे शू न्य मे तू मुस्कान भरे
भीगा भीगा सा मन हो
शेष अभी सारे बंधन हो
पल भर की खामोशी हो
नयनो का नयनो से हो संवाद
मरूस्थल मे भी छा जाए मधुमास
वो तुम्हारे स्नेह के आलंबन
वो तुम्हारी मधुर मुस्कान
तृप्त हो गये मेरे नयन और प्राण
तुम्हारी यह चितवन बनी
मेरे जीवन का स्मृति उपहार
आज चांदनी रात मे
नाम तुम्हारा जपती हूँ
अपने जागरण को आज
फलित मै करती हूँ
आज फलित मै करती हूँ
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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