बहुत कठिन है डगर पनघट की..............
कहाँ से गलत मोड़ ले लिया
रास्तों के बावजूद मंजिले तय नहीं
किसी अपने का हाथ छूटा
वो भी अपने मेले में
टटोल कर हाथ दूसरा थामा
वो भी उनके मेलों में
भीड़ में खड़े अकेले अजनबी से
मुस्कुरा रहे फिर भी हम
निगाहों में किसी की अभी भी हैं हम..........
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