Monday, June 15, 2020

परीक्षा प्रणाली...... महामारी नोबल कोविड 19

 वर्तमान में पूरा विश्व नोबेल कोविड-19 की महामारी से जूझ रहा है ,और हमारे छात्र उससे भी बड़ी महामारी से बरसों से लड़ रहे हैं मेरा यह लेख हमारी परीक्षा प्रणाली को लेकर है और मेरा यह लेख पूर्णता निर्दोष छात्रों को समर्पित है। निर्दोष क्यों कह रहीं हूँ ..... ?   कोविड 19 पुरे विश्व में कहर बरपा रहा है ......और हमारी शिक्षा प्रशासनिक तंत्र  परीक्षा करवाने की तैयारी में लगा  है। अच्छी बात है     पर फिर भी कुछ कहना है ।ये सिर्फ और सिर्फ औपचारिकता और खानापूर्ती है   .....क्योंकि हमारी परीक्ष प्रणाली  ....####... पहले भी यही कर रही 
परीक्षा के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो इसका अर्थ होता है ,"चारों ओर अच्छे तरीके से देखना"। शिक्षण के साथ परीक्षण साथ साथ चलने वाली अनिवार्य प्रक्रियाएं हैं ।परीक्षण के बिना हम यह ज्ञात नहीं कर सकते कि हमने जो शिक्षण या शिक्षा दी है वह ठीक दिशा में आगे बढ़ रही है या नहीं। मतलब परीक्षण ही वह तरीका है जिससे हम शिक्षा की सफलता या असफलता को देखते हैं। यह हमेशा से होता भी रहा है,। परीक्षण हमेशा से ही शिक्षा का अभिन्न अंग रहा है। प्राचीन काल में देखें तो जब हमारी गुरुकुल व्यवस्था थी उस समय भी शिष्य की अंतिम योग्यता को गुरु परीक्षा के माध्यम से ही आंकता था। वह व्यवहारिक भी होती थी,मानसिक भी होती थी ,और शारीरिक भी होती थी। अगर आधुनिक भारत में शिक्षा में परीक्षा की बात करें तो वुड के घोषणापत्र सन् 1854 के आदेश को मानते हुए लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर हमारे यहां 1857 में जो भी विश्वविद्यालय स्थापित हुए उन्होंने परीक्षा की जो प्रणाली देश में स्थापित की वहीं परीक्षा प्रणाली थोड़ी बहुत मामूली फेरबदल के साथ आज तक चली आ रही है ।क्या आपको लगता है यह सही है ।अच्छी परिक्षा प्रणाली के कुछ गुण होते हैं ,जिसमें विश्वसनीयता और प्रामाणिकता प्रमुख है। किन्तु हमारे देश में प्रचलित वर्तमान परिक्षा प्रणाली इतनी दोष पूर्ण है कि उसमें ये दोनों गुण ही नदारद हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली वैयक्तिकता के दोष से ग्रस्त है। विश्वास के साथ कह सकती हूं इस बात को, क्योंकि अगर एक ही परीक्षक को एक ही कॉपी तीन बार चेक करने के लिए दी जाए और उसे ना बताया जाए कि यह वही कॉपी है तो वह तीनों बार ही उसका मूल्यांकन कर उसको अलग-अलग मार्क्स देता है ।और तो और लगभग 40% छात्रों का उत्तीर्ण होना या ना होना इस बात पर निर्भर होता है कि उनकी आंसर शीट कौन पढता है। मतलब परीक्षक ही कॉपी चेक करता है कि कोई और। 10% छात्रों का परीक्षा परिणाम इस बात पर निर्भर करता है उनके आंसर शीट कब पढ़ी गई है, मतलब परीक्षक जो इसे चेक कर रहा है उसके मूड पर डिपेंड करता है। हमारे विश्वविद्यालय परिक्षक के इस रवैये से परिचित है। तभी पून: मूल्यांकन की सुविधा प्रदान करते हैं । इसके जो भी परिणाम सामने आए हैं वह भी चौंकाने वाले हैं। उसने भी वर्तमान परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। इसे एक उदाहरण से समझाऊं मान लीजिए किसी विश्वविद्यालय का नाम लेना उचित नहीं है यह सभी सरकारी विश्वविद्यालयो में होता है , सरकारी क्यो   कह रही हूँ क्योंकि    निजी वि.वि.मेे तो कोई  फेेल ही नहीं होता ......   मान लीजिए 600 विद्यार्थियों ने पून: मूल्यांकन के आवेदन किया और इसमें 400 छात्र जो पहले फेल थे ,वे इस प्रक्रिया मे उत्तीर्ण हो जाते हैं, 50 छात्र ग्रेस मार्क्स पाने के अधिकारी हो जाते हैं । मतलब 75% से अधिक छात्र पास हो जाते हैं जो पहलें फेल थे। इसका क्या अर्थ है , जिन परीक्षकों ने पहले कॉपी चेक की या तो वे योग्य नहीं थे और पुनः मूल्यांकन में जिसने कॉपी चेक की वह ज्यादा योग्य थे? यह हमारी वर्तमान परीक्षा प्रणाली की अविश्वसनीयता का सर्वोत्तम उदाहरण है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली जो चल रही है उसमें किसी भी छात्र को इस परीक्षा को पास करने के लिए संपूर्ण विषय के ज्ञान की कोई आवश्यकता ही नहीं है ।परीक्षा का सीधा सा अर्थ हो गया है कि आप कितना धोखा दे सकने की कला में पांरगत हैं । पूरी पुस्तक में से सिर्फ थोड़े से प्रश्न करने हैं और उसमें भी 33% अंक प्राप्त करना ही पर्याप्त है पास होने के लिए। ये परीक्षा केवल कुछ चुने हुए प्रश्नो को रट सकने क्षमता और उसको आंसर शीट में चालाकी पूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने की परीक्षा बनकर रह गई है। मै भी शिक्षा से जुड़ी हुई हूं । बहुत तकलीफ और दुख होता है यह सब देख कर, उससे भी दुखद ये हैं कि ये सब परिक्षा प्रक्रिया हमारी शैक्षणिक प्रक्रिया पर हावी हो गई है। हम जिस परीक्षा प्रणाली पर निर्भर हैं उसमें छात्रों की छात्रों की ना तो अकेडेमिक तथा बौद्धिक उपलब्धियों की परीक्षा होती है और ना ही उनके चरित्र एवं व्यक्तित्व के किसी भी पक्ष को देखने का प्रयास किया जाता है। एक तथ्य और भी दुखद है समझिए इसे, यह परीक्षा प्रणाली में शिक्षक और विद्यार्थियों के लिए एकमात्र प्रेरक तत्व सिर्फ और सिर्फ परीक्षा है ।शिक्षक केवल उसी चैप्टर पर विशेष ध्यान देता है जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है ,और छात्र भी उसको ही रटता है जो पास होने के लिए जरूरी है। मतलब क्या हुआ परीक्षा उत्तीर्ण करना ही शिक्षक और छात्र दोनों की सफलता की एकमात्र कसौटी है।अब जब परीक्षा उत्तीर्ण करना ही सफलता की कसौटी है तो उसके साइड इफेक्ट्स भी हैं। हमारी शिक्षण व्यवस्था के पूरे  कुएं में ही भांग घुली हुई है । हमारी पाठ्यक्रम का सिलेबस ,पुस्तके, शिक्षण प्रणाली, शिक्षक सभी सिर्फ और सिर्फ परीक्षा उत्तीर्ण करने पर केंद्रित है। अब एग्जाम का समय है तो यह छात्रों के परिश्रम का समय होता है, इसको मैं समय ना कह कर मौसम कहूंगी तब क्या होता है ......छात्र खाना पीना भूल कर रतजगा करते हुए वनडे सीरीज का अखंड पाठ शुरू कर देते हैं। कुछ विशेष प्रतिभाशाली छात्र तो कॉलेज मे सिर्फ इस वन डे सीरिज़ में से भी आई एम पी क्वेश्चन पर टिक लगवाने के लिए आते हैं ,और तो और उससे भी बढ़कर कुछ शिक्षक लगा भी देते हैं ।इन सबसे भी छात्रों का मन नहीं भरता, ये परिक्षा हाल में नकल करते हुए पकड़ाते और अपनी राजनैतिक पहुँच का जोर दिखाते हैं। ना जाने कितने अनैतिक हथकंडे अपनाते हैं। इतना सब लिखने के पीछे सिर्फ यही कहने का प्रयास है कि शिक्षा में सुधार की अपेक्षा परीक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता अत्यंत जरूरी है। सुधार हो सकता है अगर नियत हो ।सुधार हो सकता है अगर मूल्यांकन की विधियां प्रमाणित हो, विश्वसनीय हो वस्तु परक हो और व्यवहारिक हो ।मूल्यांकन पर मैं इसलिए ज्यादा जोर दे रही हूं क्योंकि जिस प्रकार एक डॉक्टर अपनी सफलता का मूल्यांकन पेशेंट को स्वास्थ्य की ओर ले जाने वाले परिवर्तन से करता है उसी तरह शिक्षक अपने शिक्षण का मूल्यांकन विद्यार्थी में अपेक्षित परिवर्तन जैसे चरित्र निर्माण व्यक्तित्व विकास और छात्र के व्यवहार परिवर्तन के आधार पर करता है। और अगर हम मूल्यांकन इस पर आधारित कर दे तो निश्चित ही हमारी शिक्षण पद्धति में बदलाव आएगा । हम कुछ बेहतर छात्र और व्यक्तित्व समाज को दे पाएंगे ।यकीन मानिए यह मूल्यांकन प्रणाली हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली से अधिक उपयोगी और व्यापक होगी । जो शिक्षा के मूल उद्देश्यो को पाने में हमारी सहायक होगी।
छात्र निर्दोष है क्योंकि परिक्षा प्रक्रिया उन्होंने नहीं बनाई .....

डॉ प्रियदर्शिनी अग्रिहोत्री 

1 comment:

  1. बिल्कुल सही बात है मैम।
    आज परीक्षा में अच्छे अंक व सफलता पाने के लिए चालाकी बहुत जरूरी हो गई है।
    सीधे से कहें तो आप परीक्षक को कितना अधिक बेवकूफ बना सकते हैं यह महत्वपूर्ण हो गया है और शिक्षण संस्थानों में यही सिखाया जाता है

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