1. अप्राकृतिक साधन (i) घनत्व (Density)- पृथ्वी के ऊपरी भाग का निर्माण परतदार शैलों से हुआ है जिसकी औसत मोटाई लगभग 800 मीटर है। कहीं-कहीं यह 2000 मी० से भी अधिक पायी जाती है। इस परतदार शैलों की पेटी के नीचे धरातल के चारों ओर रवेदार या स्फटिकीय शैल (Crystalline Rocks) की दूसरी परत पायी जाती है, जिसका घनत्व 3.00 से 3.5 के बीच मिलता है। इतना स्पष्ट हो चुका है कि सम्पूर्ण पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 है अतः स्पष्ट है कि इस परत के नीचे स्थित भाग का घनत्व 5.5 से अधिक होगा और सामान्यतया इसे 11.00 माना जाता है। घनत्व सम्बन्धी विभिन्न प्रमाणों से यह पता चलता है कि पृथ्वी के क्रोड भाग (Core) का घनत्व सर्वाधिक है।
दबाव (Pressure)- धरातल के नीचे ज्यों-ज्यों बढ़ते जाएँ दबाव भी बढ़ता जाता है जिससे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के सबसे आन्तरिक भाग का अत्यधिक घनत्व अत्यधिक दबाव के ही कारण है, किन्तु वर्तमान प्रयोग चट्टान पर एक निश्चित दबाव तक की ही सीमा स्वीकार करते हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी के अन्तरतम भाग में स्थित पदार्थ स्वयं ही ऐसी धातुओं के रूप में हैं जो अत्यधिक घनत्व वाली तथा भारी हैं।
तापक्रम (Temperature) सामान्य रूप से प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर तापमान में 1°C की वृद्धि होती है, परंतु बढ़ती गहराई के साथ तापमान की वृद्धि दर में भी गिरावट आती है। प्रथम 100 किमी. की गहराई में प्रत्येक किमी. पर 12°C की वृद्धि होती है। उसके बाद के 300 किमी. की गहराई में प्रत्येक किमी. पर 2°C एवं उसके पश्चात् प्रत्येक किमी. की गहराई पर 1°C की वृद्धि होती है। विवर्तनिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में तापमान अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है।
प्राकृतिक साधन (1) ज्वालामुखी क्रिया के साक्ष्य ज्वालामुखी उद्भेदन के समय पृथ्वी के आन्तरिक भाग से गर्म तथा तरल लावा निकलकर धरातल पर प्रवाहित होता है जो कि वहाँ विशाल मैगमा भण्डार (Magma chamber) के रूप में स्थित है और इससे यह निष्कर्ष निकालना आसान है कि पृथ्वी के अन्दर कुछ भाग अवश्य ही द्रव अवस्था में होना चाहिए।
2. उल्का पिण्डों पर आधारित प्रमाण-अंतरिक्ष से भूतल पर उल्का पिंड प्रायः गिरते रहते हैं। वैज्ञानिकों ने उल्कापिण्डों अध्ययन से पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने का प्रयास किया है। विद्वानों का विचार है कि सौरमंडल का सदस्य होने के कारण इनकी उत्पत्ति तथा आंतरिक संरचना पृथ्वी की उत्पत्ति तथा आंतरिक संरचना के समान होनी चाहिए।
भूकंप विज्ञान- के साक्ष्य भूकम्प विज्ञान या कॉस्मोलॉजी के अन्तर्गत पृथ्वी की क्रस्ट में उठने वाली भूकम्पीय लहरों का भूकम्पमापी यन्त्र (Seismograph) द्वारा अंकन करके उनका अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में कुछ जानकारी भी प्राप्त की गयी है क्योंकि विभिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगें विभिन्न गुण-धर्मों वाली होती हैं तथा ये सम्पूर्ण भूगर्मिक भागों में अपनी प्रकृति के अनुसार प्रमाण करती हैं।पृथ्वी की विभिन्न परतों में भूकम्पीय लहरों के व्यवहार से पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में विश्वसनीय तथा सटीक ज्ञान प्राप्त हुआ है। किसी भूकम्प के आने पर भूकम्प के फोकस (Focus) से विभिन्न प्रकार की लहरें उत्पन्न होती हैं। इन भूकम्पीय लहरों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
(i) प्राथमिक लहरें (Primary Waves), (ii) द्वितीयक लहरें (Secondary Waves), तथा; (iii) ऊपरी परत की लहरें (Surface Waves)।
(i) प्राथमिक अथवा लम्बात्मक लहरें (Primary (P) or longitudinal Waves)- सर्वाधिक तीव्र गति से चलने वाली ये लहरें ध्वनि तरंगों की भाँति एक सीधी रेखा में चलती हैं। इनमें पदार्थों के कण गति की दिशा में ही आन्दोलित होते हैं। ये लहरे ठोस भागों में अत्यधिक तीव्र गति से प्रवाहित होती है।
(ii) गौण अथवा आड़ी लहरें (Secondary (S) or Transverse or Distortional Waves) प्रकृति जल तथा प्रकाश तरंगों से मिलती जुलती है और इनमें कण की गति लहर की दिशा के समकोण पर काटती है। इनकी सबसे मुख्य विशेषता यह है कि ये प्रायः द्रव भाग में लुप्त हो जाती हैं। (ii) प्रतलीय लहरें (Surface Waves)- ये पृथ्वी के ऊपरी भाग को प्रभावित करने वाली सर्वाधिक प्रभावशाली लहरें हैं जो अन्य लहरों की अपेक्षा सबसे लम्बा मार्ग भी तय करती हैं। इनकी गति सबसे कम होती है तथा इन्हें 'Long period or 'L' Waves' भी कहा जाता है।
पृथ्वी का रासायनिक संगठन एवं विभिन्न परतें
पृथ्वी आंतरिक भाग को तीन वृहद् मंडलों में विभक्त किया गया है, जो निम्न हैं
1. भूपर्पटी (Crust) इसकी औसत मोटाई 30 किमी. मानी है यद्यपि अन्य स्रोतों के अनुसार क्रस्ट की मोटाई 100 किमी. बताई गई है। भूकम्पीय लहरों की गति में अन्तर के आधार पर भूपर्पटी को दो भागों में बांटा गया है- ऊपरी क्रस्ट एवं निचली क्रस्ट। क्रस्ट के ऊपरी भाग में 'P' लहर की गति 6.1 किमी. प्रति सेकेंड तथा निचले भाग में 6.9 किमी. प्रति सेकेंड है। ऊपरी क्रस्ट का औसत घनत्व 2.8 एवं निचले क्रस्ट का 3.0 है। घनत्व में यह अंतर दबाव के कारण माना जाता है। ऊपरी क्रस्ट एवं निचले क्रस्ट के बीच घनत्व सम्बंधी यह असंबद्धता कोनराड असंबद्धता कहलाती है। क्रस्ट का निर्माण मुख्यतः सिलिका और एल्युमिनियम से हुआ है। अतः इसे सियाल (सीमा) परत भी कहा जाता
मेंटल (Mantle): माहो असम्बद्धता से लगभग 2900 कि मी. की गहराई तक मेंटल का विस्तार है। पृथ्वी के समस्त आयतन (Volume) का 83% एवं द्रव्यमान (Mass) का लगभग 68% भाग मेंटल में व्याप्त है। मेंटल के ऊपरी भाग का घनत्व 3-3.5 एवं निम्न भाग का घनत्व 4.5-5.5 है। इस प्रकार यह अधिक घनत्व वाले दृढ़ (Rigid) चट्टानों से निर्मित है एवं इसमें मैग्नेशियम तथा लोहा जैसे भारी खनिजों की प्रधानता है। इसे तीन भागों में विभजित किया जाता है:
(i) मोह असम्बद्धता से 200 किलोमीटर की गहराई तक। (ii) 200-700 किमी. की गहराई तक। है। (ii) 7002900 किमी. की गहराई तक भू पटल (Crust) एवं मेंटल का सबसे ऊपरी भाग दोनों मिलकर स्थलमंडल (Lithosphere) का निर्माण करते हैं। यह मुख्यतः लोचदार(Brittle) चट्टानों से निर्मित है एवं इसका विस्तार 100 कि.मी. की गहराई तक है। इसके नीचे 200 कि.मी. की गहराई तक दुर्बलमंडल (Asthenosphere) का प्लास्टिक (Plastic) एवं अपेक्षाकृत पिघला भाग है।
3. कोर (Outer Core) : यह पृथ्वी की सबसे आंतरिक परत है एवं इसे बेरी स्फीयर (Bary Sphere)कहा जाता है। यह निकेल (Ni) एवं लोहा (Fe) द्वारा निर्मित है, अतः इसे निफे भी कहा जाता है। यह पृथ्वी का सबसे आन्तरिक भाग ही जो मैण्टिल के नीचे पृथ्वी के केन्द्र तक पाया जाता है। इसकी गहराई 2900 कि० मी० से 6371 कि० मी० तक है। इसका घनत्व यद्यपि मैण्टिल की अपेक्षा दो गुना अधिक है किन्तु यह पृथ्वी के आयतन का मात्रक 16% तथा द्रव्यमान का 32% ही अपने में समाहित किये हा इसके दो उपविभाग हैं (अ) बाह्य अन्तरतम (Outer Core)- इसका विस्तार 2,900 कि० मी० से 5,150 कि० मी० के बीच है। इसमें भूकम्प की द्वितीयक लहरें या S Waves प्रवेश नहीं कर पातीं। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह मांग द्रव अवस्था में है । (ब) आन्तरिक अन्तरतम (Inner Core)- इसकी गहराई 5,150 कि० मी० से 6,371 कि० मी०(पृथ्वी के केन्द्र) तक है। इसका घनत्व सर्वाधिक अर्थात् 13.6 है। इसमें भूकम्प की P लहरों की गति 11.23 कि० मी० प्रति सेकेण्ड हो जाती है।
गटेनबर्ग वाइट असम्बद्धता (Guttenberge Wiechert Discontinuity)- पृथ्वी के आन्तरिक भाग में मैण्टिल तथा अन्तरतम के बीच 2,900 कि० मी० की गहराई पर घनत्व में एकाएक परिवर्तन आ जाता है। इसके ऊपरी भाग में स्थित मैण्टिल में जहाँ घनत्व 5.5 होता है वहीं नीचे अन्तरतम में यह बढ़कर 10.0 हो जाता है। इस भाग में P लहरों की गति भी अचानक बढ़कर 13.6 कि० मी० प्रति सेकेण्ड हो जाती है। इसी असम्बद्ध भाग को 'गटेनबर्ग वाइचर्ट असम्बद्धता' के नाम से जाना जाता है।
No comments:
Post a Comment