मैं जानता हूँ कि.....मगर फिर भीमौन तो भाव की भाषा हैमौन तो मन की अवयक्त आशा हैवो ना समझा मगर कहना उसेसपनो से खेलना आसान नहीहालातो को झेलना आसान नही ।।डाॅ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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