बदल रही रूप जिन्दगी हर पल यहाँ.........
मेरे शून्य में नाद की झंकार
मेरी परिधि के केंद्र
मेरे आकाश का विस्तार
तुम हो मेरे लिए चेतना
मेरी जागृति की सीमा
मेरे नयनों की भाषा
अधरों पर खिलती मुस्कान
मेरे जीवन की परिभाषा
तुम से जगजीवन का नाता
सत्य हो मेरे अटल विश्वास
तुमसे ही हो दिन शुरू
तुम ही बनो मेरा विराम।।
डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री
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