माना जीवन के समन्दर में 
संर्घषो का पार नही
किन्तु डूबना भी मझधारो में 
साहस को मेरे स्वीकार नही
उत्साह सिन्धु की लहरे क्षण क्षण 
चाह रहीं हैं गगन चूमना 
शेष रहता है सफलताओ पर झूमना 
जीवन के प्रखर ज्वार में अब है बहना 
करना ही है तिमिर पार
लिए  सत्य मार्ग पर स्थिर विचार 
देखना है मौन नयनो से
सत्य का युवा नया प्रकाश द्वार ।।
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