Thursday, June 04, 2020

कारवां

मुस्कुरा रहे हो तुम  भ्रम है  हमारा.......




छेडो ना स्मृतियों की माला 
मोती सारे बिखर जाऐंगे 
अकेलापन मेरा, तुम्हारा मुस्कुराना 
देर तक तुम्हारा याद आना 
गीले नयनों की पलकों पर 
प्रतीक्षा के तारों से फिर 
आँसू झिलमिलाऐगे 
गिरती पलकें झुकती नजरें 
बेतरतीब बिखराती है कुछ 
पर मैं अनेक तहें 
स्मृतियों की लगाता हूँ 
उठाओ न पलकों के परदे 
नये दृश्य उभर आएगें 
स्मृतियों के काफिले फिर 
कारवां नये कई बनाएंगे 
कोस कितने ही चले पर
इस सफर में थकने ना पाएंगे 
किन्तु तुम मृगमरीचिका सा
मेरा स्मृति भरम हो, भरम हो।।

डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री 

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