क्या भूलू क्या याद करूँ
अति भव्य असफलताओं का
भव्य नैतिक सम्मान था
जीवन की कटुता से
संघर्ष अविराम था
नाउम्मीदी का तूफान
पूरे उफान पर था
हार के तूफान से लड़ा
मन का शोक था
व्यथा मेरी देखकर
आसमां भी रो पड़ा था
समय भी था अभिमानी
करता रहा मुझसे ही मनमानी
किन्तु
सहने की सीमा का विस्तार था
धीरज भी मुझमें अपार था
विश्वास का आश्वासन था
चेतन विचारों का आवाह्न था
परिश्रम के सृजन कर्म कर्तव्य से
मेरे संकल्प मेरे उपार्जन
आस्था और विजय के विश्वास से
यह अंधकार यह समय व्यतीत
यह वर्तमान और भव्य भविष्य
यह वर्तमान और भव्य भविष्य।।
Dr priyadarshini agnihotri
Tuesday, June 02, 2020
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